श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 50
सूत्र -36,37,38,39,40
सूत्र -36,37,38,39,40
देव चाहे तो हम उन्हें देख सकते हैं l तैजस शरीर का कार्य l शुरू के तीन शरीरों में प्रदेश व परमाणु की संख्या l स्थूल और सूक्ष्म में अन्तर l प्रदेश व परमाणु की अपेक्षा से पहले तीन शरीरों में अंतर l तैजस व कार्मण शरीर का गणित l प्रतिघात का अर्थ l तैजस और कार्मण शरीर प्रतिघात से रहित होते हैं l ये दो शरीर पूरे लोक में कहीं भी बाधा रहित जा सकते हैं l बाकी तीन शरीरों की घूमने की सीमा सीमित है l
औदारिकवैक्रियिकाहारकतैजसकार्मणानि शरीराणि ।।३६।।
परं परं सूक्ष्मं।l३७।l
‘प्रदेशतोऽसंख्येय गुणं प्राक् तैजसात्’।l३८।l
अनन्तगुणे परे।l३९।l
अप्रतिघाते।l४०।l
Surekha
Gurgaon
WIINNER- 1
Beena Jain
Delhi
WINNER-2
Jolly Jain
Firozabad
WINNER-3
निम्न में से कौनसे शरीर का प्रतिघात नहीं होता?
औदारिक शरीर का
वैक्रियिक शरीर का
आहारक शरीर का
तैजस शरीर का *
सूत्र सैंतीस ‘परं परं सूक्ष्मं’ में हमने जाना कि शरीर क्रम से सूक्ष्म होते जाते हैं
अर्थात औदारिक से सूक्ष्म वैक्रियिक, उससे सूक्ष्म आहारक, उससे सूक्ष्म तैजस और सबसे सूक्ष्म कार्मण शरीर होता है
सूक्ष्म के दो पहलू हैं
एक तो स्थूलता में कमी आना और
दूसरा सूक्ष्म परमाणुओं से बना होना
देवी-देवता हमें कभी प्रत्यक्ष दिखते हैं और कभी नहीं दिखते हैं
जैसे तीर्थंकरों के कल्याणक में वे सब दिखाई देते हैं और मनुष्य के साथ व्यवहार भी करते हैं
यह उनके ऊपर निर्भर है कि वे हमको दिखना चाहते हैं या नहीं
तैजस और कार्मण शरीर इतने सूक्ष्म हैं कि वे दिखाई नहीं देते
सूत्र अड़तीस और उन्तालीस में हमने शरीरों में प्रदेश व परमाणु की संख्या को जाना
प्रदेश व परमाणुओं की अपेक्षा, पहले तीन शरीरों के परमाणु पिछले से असंख्यातगुणा होते हैं और अंतिम दो के अनंतगुणा होते हैं
औदारिक शरीर से असंख्यातगुणे परमाणु वैक्रियिक शरीर में होंगे
उससे असंख्यातगुणे आहारक शरीर में होंगे
उससे अनंतगुणे तैजस शरीर में होंगे और
उससे अनन्तगुणे कार्मण शरीर में होंगे
उदाहरण के लिए 1000 योजन की अवगाहना वाले औदारिक शरीर में जितने प्रदेश होंगे, उससे असंख्यातगुणे प्रदेश सर्वार्थसिद्धि के सबसे छोटे एक हाथ के देव में होंगे
ज्यादा परमाणुओं से मोटा ही नहीं हुआ जाता, वह ठोस भी हो सकता है
जैसे बहुत सारी रूई का गोला है, वह बड़ा है, स्थूल है
लेकिन लोहे की छोटी सी चीज में भी उससे असंख्यात गुणे परमाणु हैं क्योंकि वह ठोस है
जैसे चौलाई के लड्डू हलके हैं और बेसन के लड्डू ठोस, छोटे और अधिक परमाणु वाले हैं
तैजस से कार्मण शरीर का जो अनन्तगुणा होता है वह सिद्धों का अनन्तवाँ भाग और अभव्यों से अनन्तगुणे होता है
कार्मण शरीर ठोस और अधिक संख्या में सूक्ष्म परमाणुओं से बनता है
और वह हमें देखने में या अनुभव में नहीं आ सकता
वह सिर्फ अनुमान ज्ञान या आगम ज्ञान से जाना जा सकता है
सूत्र चालीस अप्रतिघाते में हमने जाना कि तैजस और कार्मण शरीर प्रतिघात से रहित होते हैं
प्रतिघात अर्थात बाधा या व्यवधान होना
जैसे एक पुस्तक से दूसरी पुस्तक को हिलाना; उससे दोनों एक-दूसरे से घात को प्राप्त हुयी, बाधित हुई
या दीवार से आर पार न जा पाना
मगर ये दो शरीर पूरे लोक में कहीं भी बाधा रहित जा सकते हैं
किसी भी दीवार, वज्र के पर्वत आदि को cross कर जाते हैं
आत्मा कार्मण और तैजस शरीर के साथ, समयों में, तीनों लोक में कहीं भी पहुँच जाती है
बाकी तीन शरीरों की अप्रतीघात घूमने की सीमा सीमित है
वैक्रियिक और आहारक शरीर अपनी range में बिना बाधा के घूमते हैं
लेकिन ये पूरे लोक में नहीं घूम सकते है