श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 22
सूत्र - 19
सूत्र - 19
पुद्गल का जीव के ऊपर क्या उपकार है? पुद्गल किस प्रकार जीव पर उपकार करता है ? शरीर का महत्त्व। वचन व्यापार कहाँ से शुरू होता है? वचन कितने प्रकार के होते हैं? बोलना भी शक्ति का काम है। हमारे अंदर शब्दों की मशीन है।
शरीरवाङ्मन: प्राणापाना: पुद्गलानाम्॥5.19॥
वीना जैन
गाजियाबाद
WINNER-1
Mamta Jain
Nagpur
WINNER-2
Mala Jain
Garoth
WINNER-3
कितने प्रकार की पुद्गल वर्गणाएँ बतायी गयी हैं?
पंद्रह(15)
बीस(20)
तेईस(23)*
चौबीस(24)
सूत्र उन्नीस शरीरवाङ्मन: प्राणापाना: पुद्गलानाम् में हमने जाना कि
शरीर, वचन, मन और प्राणापान, ये पुद्गलों के जीव पर उपकार हैं
जीव को औदारिक, वैक्रियक, आहारक, तैजस और कार्मण पाँचों प्रकार के शरीर पुद्गल से प्राप्त होते हैं
शरीर औदारिक, वैक्रियक आदि पौद्गलिक आहार वर्गणाओं से बनता है
बिना शरीर के जीव को पता ही न चले कि वह जीव है
यह ज्ञान इन सूत्रों को पढ़ने से ही आएगा
ऐसा ज्ञान कराने वाला संज्ञी पंचेन्द्रिय शरीर जीव के लिये उपकारी है
विकलेन्द्रियों को तो इसका पता ही नहीं होगा
शरीर ही इस संसार का मूलभूत कारण है
संसार में बिना शरीर के नहीं रहा जा सकता
संसार है तो मोक्ष है
अन्यथा मोक्ष भी क्या होता?
जीव का संसार अच्छे से चलना
और मोक्ष प्राप्त होना दोनों पुद्गल के उपकार हैं
हमने जाना कि शरीर के आधार पर ही आगे के वाङ्, मन आदि उपकार संभव हैं
‘वाङ्’ मतलब वचन
बोलने और सुनने वाले वचन भी पुद्गल का उपकार हैं
वचन बोलने की शक्ति कर्मों के क्षयोपशम से आती है
दो इन्द्रिय जीव से यह वक्तृत्व शक्ति प्रारम्भ होती है
और आगे संज्ञी पंचेन्द्रियों तक बढ़ती हुई जाती है
जिसमें इनके बोलने के ढंग भी अलग-अलग हो जाते हैं
वचन दो प्रकार के होते हैं
पहले भाव वचन - जो बोलने के लिये किये गए आत्मा के भाव हैं
यह ज्ञानावरण आदि कर्मों के क्षयोपशम के अनुसार उत्पन्न होते हैं
और दूसरे द्रव्य वचन - जो भाव वचन के अनुरूप शब्द कंठ, तालू इत्यादि से press हो करके बाहर निकलते हैं
और दूसरों को सुनायी पड़ते हैं
जो सुनने में आ रहा है, वह द्रव्य वचन है
जो बोलने का प्रयास किया जा रहा है, वह भाव वचन है
चूँकि वचनों के साथ भाव भी जुड़ा होता है
और उनका प्रभाव भी पड़ता है
कथंचित हम द्रव्य और भाव दोनों वचन सुनते हैं
दोनों प्रकार के वचन पुद्गलों से उत्पन्न होते हैं
उसी से दूसरों तक पहुँचते हैं
और वही इनको सुनने में सहायक होता है
यह सब पुद्गल का ही उपकार है
मतिज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण, वीर्यान्तराय और द्वीन्द्रियावरण कर्मों के क्षयोपशम नहीं होने पर हम बोलने की शक्ति प्राप्त नहीं कर सकते
कर्म भी पुद्गल हैं
अतः उनके क्षयोपशम के अधीन भाव वचन की शक्ति पौद्गलिक है
द्रव्य वचन शब्द के रूप में पौद्गलिक भाषा वर्गणाओं के माध्यम से बनते हैं
और मुख से निकल करके दूसरे के कर्ण इन्द्रिय तक पहुँचते हैं
तेईस प्रकार की वर्गणाओं में केवल पाँच प्रकार की वर्गणाएँ ही हमारे काम आती हैं
बाकी की केवल आगम से जानने और आगे की वर्गणाओं की उत्पत्ति के लिये कारण होती हैं
वचन उत्पत्ति में कारण भाषा वर्गणाएँ, शरीर बनाने वाली आहार वर्गणाएँ से अलग होती हैं
हमने जाना कि वचन बोलना भी बहुत शक्ति का काम है
ये एक factory की automatic मशीन से निकल रहे product की तरह बाहर निकलते हैं
जिसमें शक्ति नाभि के पास से प्रारम्भ होकर, हृदय से भाव, कंठ से स्वर जुड़ता है और तालू, होंठ आदि के स्पन्दन से उस शब्द की रचना होती है
उसके अंदर भाव डलता है
फिर कानों के माध्यम से जब वह पहुँचता है
तो अपने ज्ञानावरण के क्षयोपशम से अंदर पहुँचता है
यह पुद्गल का ही उपकार है कि
कर्म के क्षयोपशम आदि होने पर हम वचन शक्ति के प्रभाव से
अपने अन्दर ज्ञान पैदा कर पाते हैं
और ज्ञानावरण आदि कर्म के क्षयोपशम बढ़ा पाते हैं
पुद्गल को इस उपकार करने के लिए जीव का भी आश्रय चाहिये
क्योंकि चेतना या भाव शक्ति तो जीव में ही है