श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 08
सूत्र - 04
सूत्र - 04
Knowledge ही सबसे बड़ी energy है।हमारे भीतर जैसी energy होती हैं, वैसी ही energy हम universe से catch करते है।Universe के creation में God का कोई role नहीं है।हमें बच्चों को सही ज्ञान से अवगत कराना चाहिए।द्रव्य का अवस्थितपना।सभी द्रव्य अवस्थित हैं अर्थात् जितनी संख्या में हैं, उतनी ही संख्या में रहेंगें।द्रव्य की नित्यता और अवस्थितता में अंतर।अवस्थित हमें संख्या की ओर ले जा सकता है और नित्य हमें उस द्रव्य की quality की ओर ले जाएगा।द्रव्यों की नित्यावस्थितता अर्थात् द्रव्यों के अवस्थितता की नित्यता (सूत्र के अर्थ का एक अलग दृष्टिकोण)।
नित्या-वस्थितान्य-रूपाणि।।4।।
Manju jain
Jaipur Rajasthan
WINNER-1
Pramod Kumar Jain
New Delhi
WINNER-2
भगवान लाल जैन
बारां
WINNER-3
सभी द्रव्य जितनी संख्या में हैं, उतनी ही संख्या में रहेंगें, इस कथन के अनुसार द्रव्य कैसे हैं ?
नित्य
अवस्थित *
अस्ति
गतिमान
हमने जाना कि Knowledge की भी energy होती है
इसी से living beings किसी भी non-living substance को feel कर सकते है, produce कर सकते हैं
कुछ नया create करने में या कुछ productivity लाने के लिए यही energy काम आती है
ये energy पूरे universe के अन्दर सबसे बड़ी energy है
हम जितना energetic होते हैं, उतनी ज्यादा universe की energy को हम catch करते हैं
जैसे देव लोग, अरिहंत भगवान और हम सब इस universe में रहते हैं
देव थोड़े सा मानसिक आहार करके भी evergreen रहते हैं
केवली भगवान बिन आहार लाखों वर्षों तक वैसे के वैसे बने रहते हैं
और निरंतर सब कुछ खा-पीकर भी हमारा सब कुछ downward होता जाता है
Energy को catch करने के लिए भी हमारे पास में अपनी energy का level होना चाहिए
ब्रह्मांड में भरी सभी पुद्गल वर्गणाएँ को हम mass या matter की energy कह सकते हैं
हमने जाना कि science और Jainism की mentality कुछ एक जैसी है
दुनिया में सिर्फ दो ही चीजें हैं
जैन दर्शन के अनुसार जीव और अजीव
और विज्ञान के अनुसार mass और energy
दोनों के अनुसार, Universe के creation में God का कोई role नहीं है
वैज्ञानिक Stephen Hawkins ने भी यही माना है
हमें बच्चों को सही ज्ञान से अवगत कराना चाहिए
अगर हम जीव और अजीव के अस्तित्व को मान लेते हैं
और इनका अस्तित्व अपने आप में नित्य है
तो लोक भी अपने आप नित्य सिद्ध हो जाता है
इस सृष्टि की रचना कब हुई?
किसने की?
कितने लाख वर्ष पहले हुई?
ये सब सवाल गलत सिद्ध हो जाते हैं
नित्य होने का मतलब हमेशा बने रहना
जो जिसका स्वभाव है, quality है, वह वैसी ही बने रहना
जैसे चैतन्य आत्मा का स्वभाव हमेशा ही चैतन्य बने रहना
धर्म, अधर्म, आकाश, पुद्गल, जीव सभी की quality अलग-अलग हैं
द्रव्य के अवस्थित होने का मतलब है कि
द्रव्य की जितनी quantity या number है वह हमेशा उतनी ही रहेगी
कोई नया नहीं आयेगा
quantity fix है
उस द्रव्य के अन्दर के गुण
उसके जैसे द्रव्यों की संख्या
length और width
संरचना आदि सब जैसी है वैसी ही रहेगी
अवस्थित हमें संख्या की ओर ले जाता है
और नित्य उस द्रव्य की quality की ओर
इस प्रकार द्रव्यों की quality के साथ quantity भी fix है
जिस द्रव्य कि जितनी संख्या, प्रदेश,और जैसी स्थिति है, वह वैसी ही रहेगी
अनन्तता का विज्ञान भी जैसा है, वैसा ही रहेगा
जीव द्रव्य की संख्या अनन्त है
पुद्गल द्रव्य की संख्या जीव द्रव्य से अनन्त गुना है
काल द्रव्य में उससे भी बढ़कर अनन्त समय हैं
और आकाश द्रव्य में उससे भी बढ़कर अनन्त प्रदेश हैं
द्रव्य छह हैं तो छह ही रहेंगे
अस्तिकाय पाँच हैं तो पाँच ही रहेंगे
आचार्य अकलंक देव ने सूत्र के अर्थ को एक अलग दृष्टिकोण से “नित्य-अवस्थित” रूप में भी समझाया
जैसे एक हंसमुख लड़का हमेशा हंसता है
मगर वह हंसने के अलावा अन्य काम भी करता है
हँसना तो उसका एक स्वरूप है
उसी प्रकार ‘नित्यावस्थित’ द्रव्य हमेशा अवस्थित रहता है
लेकिन वह परिणमन आदि भी करता है
हम उसके परिणमन को गौण करके हमेशा अवस्थित रहने वाला कहते हैं