श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 10
सूत्र - 06
सूत्र - 06
धर्म, अधर्म और आकाश द्रव्य एक-एक है। आकाश द्रव्य एक ही है और अखण्ड है। लोकाकाश और अलोकाकाश। आकाश द्रव्य का विभाजन नहीं सीमांकन होता है लोकाकाश और अलोकाकाश के रूप में । 'अखंडता' द्रव्य का स्वभाव है। लोक में अवस्थित षट् द्रव्यों के स्वरूप को समझने के लिए ध्यान। धर्म, अधर्म और आकाश द्रव्य एक-एक होने पर भी 'काय'वान है। आकाश द्रव्य का अवगाहनत्व गुण। आकाश द्रव्य के अवगाहनत्व गुण को science के gravitational force के रूप में समझा जा सकता है। आज का विज्ञान अलोकाकाश को स्वीकार करता है एक dark energy के रूप में। लोकाकाश के किसी भी स्थान में vacuum नहीं हो सकता।
आ आकाशादेक द्रव्याणि।।6।।
Kiran jain
Nagpur
WINNER-1
करुणा जैन
धरियावद
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Mital k salot
Vadodara
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अवगाहनत्व किस द्रव्य का गुण है?
काल का
धर्म का
अधर्म का
आकाश का*
सूत्र छह - आ आकाशादेक द्रव्याणि में हमने द्रव्यों की संख्या को जाना
'आ' मतलब होता है - वहाँ तक
'आकाशात्' यानि आकाश द्रव्य तक,
एक-द्रव्याणि यानि एक द्रव्य होते हैं
अर्थात सूत्र एक - अजीवकाया धर्माधर्माकाशपुद्गलाः में आकाश द्रव्य तक
अर्थात धर्म, अधर्म और आकाश एक द्रव्य होते हैं
आकाश द्रव्य के बारे में एक गलत धरणा लोगों में होती है कि ये दो रूपों - लोकाकाश और अलोकाकाश में विभक्त है
वास्तव में द्रव्य तो एक ही है
और पूर्णतः अखण्ड है
बिना किसी dividation के
यह तो इसका सीमांकन होता है
आकाश को जिस चीज के साथ में रखते हैं, वह उसी रूप में ढल जाता है
जैसे घड़े के अन्दर घटाकाश
और वस्त्र के साथ पटाकाश
इसी तरह जितना आकाश हम लोक के साथ जोड़ते हैं उसे लोकाकाश कहते हैं
इसमें धर्म, अधर्म, जीव, पुद्गल द्रव्य होते हैं
और उसके परे अलोकाकाश कहते हैं
यहाँ पर अन्य द्रव्य नहीं होते
आकाश द्रव्य नित्य, अवस्थित, अस्ति, काय और अजीव है
इसे आकाश अस्तिकाय भी कहते हैं
जितने स्थानों पर आकाश द्रव्य है
उसी स्थान पर, उन्हीं space points पर धर्म और अधर्म द्रव्य भी फैला हुआ है
ये धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय हो गए
उन्हीं space points पर एक-एक काल का भी द्रव्य फैला हुआ है और
उन्हीं space points पर अनेकों जीव और पुद्गल भी हैं
मुनि श्री ने अस्तिकाय में काया को समझाने के लिए चादर का उदाहरण दिया
काय का अर्थ है जिनके बहुत सारे प्रदेश या space points हों
आकाश को हम अगर एक चादर की तरह देखें
तो धर्म और अधर्म उसके ऊपर एक-एक चादर हैं
ये तीनों मिलाकर एक मोटी काया के रूप में हो गए
तीन-तीन अस्तिकाय स्पष्ट रूप से बिल्कुल एक के ऊपर एक
यानि ऊपर से देखने पर वे एक अस्तिकाय हैं
इससे हमें समझ आता है कि ये द्रव्य एक-एक होते हुए भी अस्तिकाय हैं क्योंकि
इनके अन्दर इतना बड़ा काय का व्यवहार हो रहा है
आकाश द्रव्य में अवगाहन गुण होता है
जिसके कारण धर्म, अधर्म आदि द्रव्य उसके साथ, उसके पास और उसमें रहते हैं
धर्म, अधर्म, आकाश में अगर जीव और पुद्गल को भी शामिल करलें तो
वो आज के विज्ञान के अनुसार Quantum field कहते हैं
Modern science में Newton के gravitational force की अपेक्षा Einstein की व्याख्या सूक्ष्म और समझने योग्य है
Einstein ने अनुसार इस आकाश के अन्दर gravitational force हर जगह काम करता है
आकाश के अवगाहनत्व गुण को इसी force के रूप में समझ सकते हैं
आकाश द्रव्य और इसके अवगाहन गुण के ही कारण से आकाश द्रव्य दूसरे द्रव्य को सहायक बन रहा है
उसे स्थान दे रहा है
यह सबसे बड़ा gravitational force है
भारी चीजों को नीचे गिराने तो gravity की बहुत स्थूल परिभाषा है
Gravitational field की सूक्ष्म परिभाषा में
यह सूक्ष्म द्रव्यों को भी अपने पास समाहित कर सके
उनको रहने के लिए space दे
यह पूरे लोकाकाश में बन रहा है
अवगाहनत्व गुण के कारण यह अलोकाकाश में भी बना हुआ है
विज्ञान भी यह बात स्वीकारता है कि लोक के परे अलोक होता है
अन्य कोई दर्शन इसे नहीं मानता
लेकिन विज्ञान इसे dark energy के रूप में मानता है
क्योंकि उन्हें वहाँ कुछ भी दिखाई नहीं देता
और उनकी ज्ञान की दिशा वहाँ पहुँच ही नहीं सकती
जहाँ तक विज्ञान को दिखाई पड़ता है
वहाँ वे सब light और light की energy से नापते हैं
light year यानि प्रकाश वर्ष को एक मापक बना रखा है
e=mc² में 'c' इसी प्रकाश की गति होती है
Science ग्रन्थों में पढी हुई चीजों को सीधे प्रस्तुत नहीं करता
बल्कि उसे practically समझा कर या prove करके कहता है