श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 10
सूत्र - 08,09
Description
द्वीप और समुद्रों का आकार और विस्तार। विष्कम्भ(विस्तार) से तात्पर्य उन वलयाकार द्वीप-समुद्रों की चौड़ाई/मोटाई से हैं, व्यास(diameter) से नहीं। जम्बूद्वीप वलयाकार नहीं है। जम्बूद्वीप का वर्णन करने के लिए सूत्र- सूत्र के अर्थ में हुई शंका का समाधान। जम्बूद्वीप थाली के आकार का है।
जम्बूद्वीप के मध्य में मेरू पर्वत है। तीन लोक का मध्य स्थान मेरू पर्वत की जड़ के अंत में स्थित आठ प्रदेश हैं। इन आठ मध्य प्रदेशों के द्वारा लोक का विभाजन ।
Sutra
द्वि-र्द्वि-र्विष्कम्भाःपूर्व-पूर्वपरिक्षेपिणो वलयाकृतयः ॥08॥
तन्मध्ये मेरुनाभिर्वृत्तो योजन-शत-सहस्र विष्कम्भो जम्बूद्वीप:॥09॥
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WINNERS
Day 10
06th October, 2022
Lalitha Jinagouda
Bangalore
WIINNER- 1
Sandhya Jain
Jabalpur
WINNER-2
उषा जैन
शिकोहाबाद
WINNER-3
Sawal (Quiz Question)
जम्बू द्वीप का आकृति कैसी है?
त्रिभुजाकार
षट्कोणाकार
वृत्ताकार*
वर्गाकार
Abhyas (Practice Paper):
Summary
सूत्र 8 “द्वि-र्द्वि-र्विष्कम्भाःपूर्व-पूर्वपरिक्षेपिणो वलयाकृतयः” के अनुसार सभी द्वीप और समुद्रों की संरचना वलयाकार यानि चूड़ी या कंगना के आकार जैसी है
समुद्र के बाद द्वीप, फिर द्वीप के बाद समुद्र इस तरह ये एक-दूसरे को पूरा ‘परिक्षेपि’ मतलब 'चारों ओर से एक समान घेरे हुए' वलयाकार हो जाते हैं
पिछले वलय की अपेक्षा आगे वाले वलय का चारों ओर विष्कम्भ यानि विस्तार दुगुनेपन को लिए हुए होगा
अर्थात इसकी चौड़ाई सर्वत्र गोलाई में एक समान होगी
इनका diameter दूना नहीं होगा
पहले द्वीप जम्बूद्वीप को छोड़कर, सभी द्वीप और समुद्र की आकृति वलयाकार है
वलय की आकृति लवण समुद्र से शुरू हो कर के स्वयंभूरमण समुद्र पर खत्म होती है
सूत्र 9 “तन्मध्ये मेरुनाभिर्वृत्तो योजन-शत-सहस्र विष्कम्भो जम्बूद्वीप:” के अनुसार सभी द्वीप-समुद्रों के बीचों-बीच में जम्बूद्वीप है
परन्तु सूत्र 8 में अगर हम बिल्कुल शब्दशः अर्थ निकालेंगे तो उसके अनुसार ऐसा भी ध्वनित होता है कि जितने भी द्वीप-समुद्र का वर्णन किया गया था उसमें जम्बूद्वीप भी शामिल ही था
जम्बूद्वीप से ही तो दूना करना था
अब द्वीप और समुद्रों के बीच में यह कोई नया जम्बूद्वीप आ गया क्या?
लेकिन जम्बूद्वीप के बीच में कोई दूसरा जम्बूद्वीप नहीं है
आचार्य कहते हैं कि शब्द अपनी एक निश्चित सामर्थ्य रखते हैं
और हमें शब्दों के साथ-साथ अर्थ को भी देखना चाहिए
यहाँ हमें अर्थ लगाना है कि लवणसमुद्र से दुगना होना शुरू हुआ और वहाँ से जो द्वीप-समुद्र हुए हैं उन द्वीप और समुद्रों के बीच में जम्बूद्वीप है
जो दुगुना हुआ है, वह वलयाकृति है
और जो दुगुना नहीं हुआ है वह जम्बूद्वीप 'वृत्ताकार' अर्थात थाली के आकार का है
इसकी नाभि में यानि मध्य में मेरू पर्वत है
लेकिन मेरू पर्वत जम्बूद्वीप के बिल्कुल accurate middle में नहीं है
यह उपचरित है
श्लोकवार्तिक में आचार्य विद्यानन्दी महाराज के अनुसार जो मध्यस्थान उपचार से थोड़ा बहुत आगे पीछे भी होता है उस उपचरित मध्यस्थान को भी हम मध्य ही कहेंगे
जैसे मनुष्य के शरीर में नाभि मध्य में नहीं बैठती
पर लगभग मध्य में होती है तो उसे उपचरित कहते हैं
मेरु पर्वत एक लाख योजन ऊँचा होता है
इसमें एक हजार योजन की नीचे जड़ होती है और निन्यानवें हजार योजन का ऊपर फैलाव होता है
इसकी जड़ के अन्त के आठ प्रदेशों के मध्य को पूरे लोक का मध्य माना जाता है
इस तरह मध्यस्थान देख कर अगर हम ऊर्ध्वलोक और अधोलोक का विभाजन करते हैं तो यह दो ही लोक सिद्ध होते हैं
नीचे अधोलोक के सात राजू
और ऊपर ऊर्ध्वलोक के सात राजू
मध्यलोक तो कहीं है ही नहीं
यह भी एक विवक्षा - यानि वक्ता की इच्छा है
इस विवक्षा से ऊर्ध्वलोक में ही मध्यलोक शामिल है