श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 15
सूत्र - 14,15
सूत्र - 14,15
बाहर से सुख पर भीतरी दुःख ।
अस-दभिधान-मनृतम् ॥7.14॥
अदत्ता-दानं स्तेयम्।।7.15।।
14th, Dec 2023
सुमन जैन
दिल्ली
WINNER-1
Sudhesh Jain
New Delhi
WINNER-2
Poonam Jain
Noida
WINNER-3
आदान क्या होता है?
दान देना
माँगना
ग्रहण करना *
बिना दिया हुआ
सूत्र चौदह अस-दभिधान-मनृतम् में हमने जाना कि
असत् यानि अप्रशस्त, अप्रशंसनीय, दूसरों को अच्छे न लगने वाले वचन
अभिदानम् अर्थात् कहना/ बोलना असत्य होता है
असत् शब्द यहाँ व्यापक हैं क्योंकि
असत्य वचन हिंसा का कारण भी बन सकते हैं
और पीड़ा का भी
पीड़ा पहुँचाने में भी भाव हिंसा होती है
असत्य वचन भी ‘प्रमत्तयोगात्’ यानि प्रमत्त योग से बनते हैं
लेकिन प्रमाद के कारण हमें,
एक नशे में धुत्त व्यक्ति की तरह,
इसका पता ही नहीं चलता
हम असत्य, अहितकर वचन बोल कर भी मानते हैं कि
हम सत्य, हितकर ही बोल रहे हैं
हम प्रमाद से एकमेक होकर प्रवृत्ति करते हुए
अपने को बिल्कुल सही समझते हैं
बिना प्रमाद के हम झूठ नहीं बोल सकते
मुनि श्री ने, बच्चों की दृष्टि से, नशेड़ी व्यक्ति के उदाहरण पर ही सवाल करके पूछा
बच्चा बहुत समझदारी से, पूरी सावधानी से झूठ बोलता है
तो फिर उसमें प्रमाद कैसे हो गया?
मुनि श्री ने ऐसे युवा प्रश्नों के उत्तर में समझाया कि
इसे हमें हिंसा से समझना होगा
क्या सावधानी से की हुई हिंसा ठीक है?
Intentionally गुलेल मारना, भाला या बन्दूक से सावधानी पूर्वक हिंसा करना पाप नहीं?
यह कषाय रहित सावधानी नहीं कषाय सहित सावधानी है
यह कषाय ही तो प्रमाद है
और कषायी व्यक्ति ही दूसरे को परेशान देखकर खुश होता है
बच्चे की सावधानी भी, कषाय के साथ हैं
और इसलिए उसके वचन प्रमाद योग सहित हैं
हमने जाना कि हम प्रमाद के कारण दूसरे को या खुद को दुःख पहुँचाते हैं
झूठ बोलते समय तो हमें अच्छा लग सकता है
लेकिन हम भीतर से पीड़ित महसूस करते हैं
शांति से झूठ बोला तो जा सकता है
लेकिन मन भीतर से शांत नहीं रह सकता
चूँकि हमने झूठ रहित शांति का कभी अनुभव ही नहीं किया
हो सकता है हमें ये अशांति महसूस न हो
लेकिन ये अशांति स्व-घात का कारण है
सूत्र पन्द्रह अदत्ता-दानं स्तेयम् में हमने जाना कि
अदत्त अर्थात् बिना दिया हुआ, आदान अर्थात् ग्रहण करना - स्तेय अर्थात् चोरी कहलाती है
यह भी प्रमाद योग से होती है
हमने जाना कि चीजों का अधिकार क्षेत्र अपने व्रत के अनुसार होता है
अव्रती ने जो अपने अधिकार क्षेत्र में रखा है, वह उसका है
आगे बढ़ते-बढ़ते व्रती का परिग्रह भी छूटता जाता है
और वह चीजों पर अधिकार भी छोड़ देता है
बाद में अगर बिना बताये उन चीजों को फिर ग्रहण करता है
तो वह भी चोरी है
हमने जाना कि अदत्त आदान उन चीजों में लगता है
जो हमारे लिए ग्राह्य नहीं हैं या दूसरे द्वारा देने पर या उसे बताकर ग्राह्य हैं
उन्हें वैसे न बताकर ग्रहण करना भी चोरी है
जैसे बिना connection के light, पानी आदि का उपयोग करना
या government के under आने वाली वनसंपदा का उपयोग करना
जो प्राकृतिक संपदा है जैसे नदी, समुद्र, झरना, बरसात आदि
या सार्वजनिक रूप से प्रयोग में आती हैं जैसे प्याऊ, hand pump आदि
उनके use करने में बताने की जरुरत नहीं है
लेकिन जहाँ किसी ने अपना अधिकार जमा रखा है जैसे तालाब, कुआँ आदि
वहाँ उसको बिना बताये use करना चोरी में आएगा
जिसमें चीजों में लेन-देन का व्यवहार होता है
उन्हें ही चोरी के रूप में कहा गया है
हवा ग्रहण कर, श्वास लेना चोरी नहीं है
चूँकि अदत्तादान में भी प्रमाद का योग छुपा हुआ है
इसलिए हमारे अंदर बिना दिए हुए किसी भी चीज को ग्रहण करने का भाव नहीं होना चाहिए
हमें सावधानी से देखना चाहिए कि हमने चीजों को कानूनी तरीके से अपने अधिकार में लिया है
तभी हम चोरी और बिना चोरी का महत्व समझ सकेंगे