श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 18

सूत्र - 30,31

Description

सभी द्रव्‍यों की सभी पर्यायों को ग्रहण करना, यह केवलज्ञान का विषय है, एक साथ, एक आत्मा में कितने ज्ञान हो सकते हैं? सम्यग्ज्ञान और मिथ्याज्ञान मे अन्तर

Sutra

एकादिनी भाज्यानि युगपदेकस्मिन्ना चतुर्भ्य: ।।1.30।।

मतिश्रुतावधयो विपर्ययश्च ।।1.31।।

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WINNERS

Day 18

16th March, 2022

Neera Jain

Ambala Cantt

WINNER-1

Mamta Jain

Ichalkarnji

WINNER-2

Varsha Jain

Delhi

WINNER-3

Sawal (Quiz Question)

असहाय ज्ञान कौन सा है?

  1. अवधि ज्ञान

  2. केवल ज्ञान *

  3. मति ज्ञान

  4. मन:पर्यय ज्ञान

Abhyas (Practice Paper) : https://forms.gle/TDCaWUdyJf9fwtMF8

Summary


  1. आज हमने जाना कि केवलज्ञान का स्‍वरूप अनन्‍त द्रव्यों को, अनन्‍त पर्यायों के साथ जानना है

  2. आचार्य समन्तभद्र ने सम्यग्ज्ञान के बारे में कहा है - अन्‍यूनमनतिरिक्‍तं अर्थात न तो न्यून न अतिरिक्त; जैसा है वैसा ही जानो

  1. हमने एक प्रचलित भ्रान्ति क्रमबद्ध पर्याय को समझा

    • इन पंडितों का तर्क है कि यदि अनन्‍तकाल तक की एक-एक पर्याय भगवान के ज्ञान में निश्चित हैं

    • तो हर पर्याय के पहले का और बाद का क्रम fixed है, बन्ध गया है

    • अतः क्रमबद्ध पर्याय

    • चूँकि सभी पर्यायें निश्चित हैं हमें सिर्फ क्रमबद्ध पर्याय का निश्चय करना है और कुछ नहीं

    • बाकी सब तो काललब्धि आने से स्वतः ही हो जायेगा

    • सब कुछ उपादान से ही होता है


  1. इस तरह के तर्क आगम अनुकूल नहीं हैं

  2. किसी भी प्रमाणिक आचार्य ने क्रमबद्ध पर्याय को परिभाषित नहीं किया है

  3. सिर्फ लोगों को भ्रमित किया जा रहा है

  1. स्वरूप विपर्यास का मतलब है जो स्वरुप हमें बताया गया है उससे अधिक जानना, जो स्वरुप के अलावा है

  2. जैसे केवलज्ञान का विषय सब द्रव्यों की सभी पर्यायों को जानना है

  3. मगर इसमें यह कहना कि सभी पर्यायें निश्चित हैं, क्रम-बद्ध हैं स्वरुप विपर्यास हो गया

  4. निश्चय एकान्‍त भी मिथ्‍यात्‍व है

  1. सूत्र 30 में हमने समझा कि एक आत्मा में एक साथ चार ज्ञान तक हो सकते हैं

    • पाँच ज्ञान एक साथ कभी नहीं होते

    • एक ज्ञान होगा तो केवलज्ञान होगा; यह अन्य क्षयोपशम ज्ञानों के साथ नहीं रहता

    • दो ज्ञान होंगे तो मतिज्ञान श्रुतज्ञान होंगे

    • तीन ज्ञान होंगे तो मतिज्ञान श्रुतिज्ञान के साथ अवधिज्ञान और मनःपर्यय ज्ञान में से एक होगा

    • चार ज्ञान होंगे तो मतिज्ञान श्रुतिज्ञान अवधिज्ञान और मनःपर्यय ज्ञान होंगे


  1. हमने जाना कि जिस ज्ञान से हम काम ले रहे हैं वह उपयोग रूप है और

  2. जिस ज्ञान का सद्भाव हमारे अन्दर कर्म के क्षयोपशम के कारण है वह लब्धि‍ रूप है

    • इसे हम उपयोग कर भी सकते हैं और नहीं भी


  1. केवलज्ञान हमेशा उपयोग रूप ही होता है

    • यह सर्व समर्थ होता है

    • इसे किसी की सहायता की जरूरत नहीं इसलिए इसे असहाय भी कहते हैं


  1. मिथ्याज्ञान के बारे में सूत्र 31 में हमने जाना कि मति‍ज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान विपरीत रूप भी होते हैं

  2. क्योंकि यह ज्ञान विपरीतता लिए होते हैं

  3. जैसे मति श्रुत ज्ञान से मनुष्य को सिर्फ मनुष्य जानना, आत्मा नहीं जानना