श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 05
सूत्र - 04,05
सूत्र - 04,05
मन को contol कैसे करें। भावना का अर्थ। 3 समितियां। सत्य बोलने के लिए भय का त्याग करें। हास्य का प्रत्याख्यान।
वाङ्मनोगुप्तीर्याऽदान-निक्षेपण-समित्यालोकितपान - भोजनानि पञ्च ॥7.4॥
क्रोध-लोभ-भीरुत्व-हास्यप्रत्याख्याऽनान्यनुवीचि भाषणं च पञ्च ॥7.5॥
8th, Nov 2023
Reeta Jain
Chandrapur
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Agra
WINNER-3
प्रत्याख्यान का अर्थ क्या है?
भय
त्याग*
लोभ
सामायिक
हमने जाना कि मन में चल रहे गुस्से आदि को, मन को control करने के लिए
हमें बार-बार भावनाओं से मन को समझाना होगा
जिससे मन में गुप्ति आने लग जायें
इससे मन अपने आप धर्म ध्यान में ही लगेगा और आर्त ध्यान से दूर रहेगा
यह मन को बार-बार समझाने से ही होगा
मन को धिक्कारना ही आर्त ध्यान से मुक्त करने का तरीका है
और जब इसमें आर्त ध्यान नहीं आए तो समझना हमारी मनोगुप्ति बन गई
हमने जाना कि संस्कार - सुगन्ध और दुर्गन्ध दोनों के होते हैं
दुर्गन्ध के संस्कार को हटाने के लिए, हमें उसमें इतनी सुगंध डालनी है
कि उसमें सुगंध के संस्कार आने लग जाएँ
जब तक भीतर कषाय, द्वेष, मिथ्या बुद्धि की दुर्गंधें न समाप्त हो जाएँ
तब तक - मैं मनोगुप्ति को धारण करने वाला व्रती हूँ
ऐसी सुगंधी छिड़कनी होगी
अगर सुगंध दुर्गन्ध में बदल जाये
तो फिर से डालना होगा
भावना से संस्कारित मन में कभी भी कषायों की दुर्गंध नहीं आएगी शोधन
हमने जाना कि पाँच समितियों में से ईर्या और आदान निक्षेपण समितियाँ विशेष रूप से अहिंसा की रक्षा के लिए हैं
ईर्या समिति में जदम चरे को चरितार्थ करते हुए, हमें हमेशा अहिंसा की रक्षा के भाव से यत्नपूर्वक देखभाल करके चलने चाहिए
आदान निक्षेपण समिति में चार प्रकार के निक्षेप - अप्रमार्जित, दुष्प्रमष्ट, सहसा, अनाभोग को ध्यान रखते हुए
सावधानी पूर्वक कमंडलु, पुस्तक आदि को
प्रत्यवेक्षित अर्थात देख कर
और पिच्छिका से प्रमार्जित करके
उठाना, रखना चाहिए
यह उत्कृष्ट विधि मुनि महाराज के लिए है
और श्रावक भी यथायोग्य इस पर ध्यान देते हैं
अहिंसा व्रत के लिए पाँचवीं भावना है आलोकित पान भोजन करना
अर्थात natural sunlight में, न कि tubelight के प्रकाश में भोजन करना
सूर्य के प्रकाश में वातावरण जीवों से रहित होता है
अन्य प्रकाश में यह संभव नहीं है
इसलिए आचार्यों ने रात्रि भोजन सर्वथा वर्जित किया है
चाहे वो महाव्रती हो या देशव्रती हो
यदि दिन में भी अंधकार हो जाये
जैसे वर्षा ऋतु में आहार करते समय, बहुत ज्यादा घटाएँ घिरने से अंधेरा छा जाये
तो भी वातावरण और काल भोजन करने लायक नहीं रहता
ऐसे में श्रावक तो इंतजार कर सकता है
लेकिन मुनि महाराज को अंतराय ही करना होता है
सूत्र पाँच क्रोध-लोभ-भीरुत्व-हास्यप्रत्याख्याऽनान्यनुवीचि भाषणं च पञ्च में हमने सत्य व्रत की भावनाओं को समझा
अर्थात क्रोध, लोभ, भीरूत्व, हास्य का प्रत्याख्यान मतलब त्याग करना
क्रोध में हमारा विवेक, समझदारी कम हो जाती है
जैसे हवा में छन्ना उड़ जाता है वैसे ही क्रोध से भीतर का छन्ना उड़ जाता है
और अप्रासुक बाहर आ जाता है
इसलिए इसके साथ की गयी तत्त्व की विवेचना भी असत्य की कोटि में आ जाती है
जमीन, व्यक्तिादि में लोभ रखकर वचन बोलना हितकर नहीं है
यह भी सत्य वचन की कोटि में नहीं आता
भीरुत्व अर्थात डर
सत्य बोलने के लिए हमें भीरूता का त्याग करना होगा
और निडर हो करके बोलना होगा
क्योंकि सत्य डर के साथ नहीं बोल सकते
अभ्यास के अभाव में श्रोताओं के सामने डरना अलग बात है
मगर लोग हमारे खिलाफ हो जायेंगे
ऐसा सोच कर सत्य नहीं बोलना डर है
ये सब प्रत्याख्यान के योग्य हैं
बिना तत्त्व ज्ञान के, केवल हँसी-मजाक आदि हास्य वचन भी सत्य की कोटि में नहीं आते
तत्त्व ज्ञान गंभीरता के साथ दिया जाता है
इसे देते हुए थोड़ा सा प्रसन्नता का भाव अलग चीज है
लेकिन हास्य मिश्रित होने से लोग इसे अच्छे ढंग से नहीं स्वीकारते
इससे तत्त्व ज्ञान भी दूषित हो जाता है
इसलिए तत्त्व ज्ञान के समय हास्य का प्रत्याख्याख्यान करना चाहिए