श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 12

सूत्र - 5

Description

कर्म के उदय से ही सम्यक्त्व उत्पन्न होता है l क्षयोपशम सम्यक्त्व की प्राप्ति में अन्य की अपेक्षा उतने पुरुषार्थ की आवश्यकता नहीं होती l परिणामों की निर्मलता क्षयोपशम सम्यग्दर्शन में सबसे कम होती है l चल दोष, मल दोष और अगाढ़ दोष l सम्यक्त्व कर्म प्रकृति पंचम काल में बहुत उपकारी है l कुछ कर्म प्रकृतियाँ जीवों के लिए उपकारी है l अनन्तानुबन्धी कषाय सम्यग्दर्शन का घात करती है l

Sutra

ज्ञानाज्ञान-दर्शन-लब्धयश्चतुस्त्रि-त्रि-पंचभेदा: सम्यक्त्व चारित्र-संयमासंयमाश्च।l५।l

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WINNERS

Day 12

27th Apr, 2022

Neetu Jain

Rajakhera, Rajasthan

WIINNER- 1

Praveen Jain

Anandpuri Banswara

WINNER-2

Survna Sanjay Khavate

Kothli

WINNER-3

Sawal (Quiz Question)

चौबीस तीर्थंकरों में भी किसी-किसी तीर्थंकर को किसी विशेष निमित्त से देखना कौनसा दोष माना गया?

  1. चल दोष

  2. मल दोष

  3. मलिन दोष

  4. अगाढ़ दोष*

Abhyas (Practice Paper):

Summary


  1. औपशमिक, क्षायिक भावों के बाद हम क्षायोपशमिक भावों के बारे में जान रहे हैं

  1. जहाँ औपशमिक सम्यग्दर्शन दर्शन मोहनीय की तीन और अनंतानुबंधी कषाय की चार प्रकृति के उपशमन से होता है और

  2. क्षायिक सम्यग्दर्शन इनके क्षय से होता है

  3. क्षयोपशम सम्यग्दर्शन दर्शन मोहनीय की सम्यक्-प्रकृति के उदय से और शेष छः प्रकृतियों के उपशमन से होता है

  4. सम्यक्-प्रकृति के उदय में सम्यग्दर्शन का परिणाम बना रहता है

  5. यह सरलता से उत्पन्न हो जाता है

  6. लम्बे समय तक, सागरों तक टिकता है

  7. और सभी गतियों में साथ जाता है

  8. पर इसके परिणामों में निर्मलता उपशम और क्षायिक सम्यग्दर्शन से कम होती है

  1. उपशम सम्यक्त्व की प्राप्ति के लिए

    • पाँच लब्धियों का होना

    • अधःकरण, अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण तीनों परिणामों का होना आवश्यक है

    • और इसमें आत्मा के पुरुषार्थ से सात प्रकार की कर्म प्रकृति का उपशमन होता है


  1. क्षयोपशम सम्यग्दर्शन केवल अधःकरण और अपूर्वकरण परिणामों से भी हो जाता है

  2. चल, मल, अगाढ़ दोषों के कारण इसमें निर्मलता बिगड़ती रहती है

    • मगर सम्यक्त्व कर्म के उदय के कारण से सम्यग्दर्शन भी बना रहता है


  1. चल दोष में जीव के सम्यग्दर्शन में एक चलन आ जाता है, उसका दृढ़ निश्चय नहीं रहता

    • वह अपने या पूर्वजों द्वारा स्थापित मन्दिर आदि को अपना मानता है और दूसरों के मन्दिर आदि को दूसरे का


  1. मल दोष मतलब सम्यग्दर्शन में मलिनता आ गई

  2. जैसे निःशंकित, निःकांक्षित आदि भावों के विपरीत भावों का थोड़ी देर के लिए उत्पन्न होना

  3. जैसे मिथ्या अनायतनों की सेवा करने का भाव

  1. अगाढ़ दोष अर्थात गाढ़पना नहीं रहना

  2. जैसे किसी-किसी तीर्थंकर को किसी निमित्त से देखना

  3. जैसे शान्तिनाथ भगवान से शांति और मुनिसुव्रत भगवान से समृद्धि मिलेगी

  1. मिथ्यात्व, सम्यक-मिथ्यात्व और सम्यक ये दर्शन मोहनीय के वंशज हैं

  2. मिथ्यात्व की अनुभाग शक्ति ज्यादा होती है और यह मिथ्यात्व जैसा ही बना रहता है

  3. सम्यक-मिथ्यात्व की अनुभाग शक्ति थोड़ी कम हो जाती है और

  4. सम्यक की अनुभाग शक्ति इतनी कम हो जाती है कि वह घात करने की क्षमता तो रखता है मगर सम्यग्दर्शन का नाश नहीं करता

    • यह इस पंचम काल में सम्यक प्रकृति के कर्म का हम पर विशेष उपकार है

    • जहां उपशम सम्यग्दर्शन अन्तर्मुहूर्त से ज्यादा नहीं रहता और क्षायिक सम्यग्दर्शन वर्तमान में होता नहीं है

    • इस कर्म के कारण क्षयोपशम सम्यग्दर्शन लम्बे समय तक टिकता है


  1. अतः तीनों सम्यग्दर्शन में अभी हमें क्षयोपशम सम्यक्त्व पर ध्यान देना चाहिए

  2. हमने जाना कि तीन लोकों के जीवों को लाभ देने वाला कर्म है तीर्थंकर नामकर्म