श्री तत्त्वार्थ सूत्र Class 18
सूत्र - 16,17,18,19
सूत्र - 16,17,18,19
पुष्कर वनस्पतिकायिक मतलब तो उसमें क्या बाधा? कमल सोने-चाँदी के नहीं बने हैं बल्कि वह उनकी एक आभा है। भगवान के चरणों के नीचे सुरभित पद्मों की रचना होती है। चिन्तन का स्पष्टीकरण। दस हजार वर्ष की आयु के बाद में वनस्पति मर जाएगी- यह नियम नहीं।वनस्पति के जीव का जन्म-मरण होता रहता है और वनस्पति वैसी की वैसी बनी रहती है। सुगन्धी वाले जल कमल पृथ्वीकायिक कैसे हो सकते हैं? आचार्य विद्यानन्दी महाराज कहते हैं- पुष्कर जल कमल है।
दश-योजनावगाहः ॥16॥
“तनमध्ये योजनं पुष्करं”॥17॥
तद्-द्विगुण-द्विगुणा हृदाः पुष्कराणि च ॥18॥
“उत्तरा दक्षिण तुल्या:”।l19।l
Pankaj Gore
Boisar
WIINNER- 1
Varsha jain
Etah
WINNER-2
कमलेश
दिल्ली
WINNER-3
वनस्पतिकायिक जीव(प्रत्येक वनस्पति) की अधिकतम आयु कितनी होती है?
एक हजार वर्ष
दो हजार वर्ष
दस हजार वर्ष*
बीस हजार वर्ष
हम जानने का प्रयास कर रहे थे कि जम्बूद्वीप में कुलाचल पर्वतों पर स्थित पद्म सरोवरों के कमल क्या पृथ्वीकायिक हैं?
मुनि श्री बताते हैं कि
आचार्यों ने जम्बू वृक्ष आदि को पृथ्वीकायिक बताया है
परन्तु कमलों के विषय में कुछ भी स्पष्ट नहीं लिखा है
लेकिन हम इनके वज्रमय तल, स्वर्ण और रजतमय पत्ते, मणिमय नालिकायें आदि को देखकर
और अनादि रचना मानकर
अपने ज्ञान से इनको पृथ्वीकायिक मान लेते हैं
आचार्य विद्यानन्दी महाराज ने पुष्कर के लिए ‘जल कमलं’ लिखा है यानि जल के अन्दर खिलने वाला कमल
फिर भी विद्वानों ने पुष्करों को जल कमल मानते हुए भी पृथ्वीकायिक ही माना है
मुनि श्री चिंतन देते हैं कि
जल के अन्दर खिलने वाला कमल पृथ्वीकायिक होगा तो वह जल कमल नहीं कहलाएगा
उसके वनस्पतिकायिक होने में क्या बाधा है?
हमने जाना कि कमलों के ऊपर महल आदि वनस्पतिकायिक में भी बन सकते हैं
क्योंकि वनस्पतिकायिक भी hard हो जाती है
जैसा discovery आदि channel पर देखने को मिलता है
हमने जाना कि सुवर्णमय, रजतमय, वज्रमय होने का अर्थ यह नहीं
कि वे स्वर्ण, रजत, वज्र अदि पृथ्वीकायिक चीजों के बने हैं
सोने-चाँदी तो उनकी एक आभा है
और उनके लिए उसी रंग की आभा में परिवर्तन होना सम्भव है
मुनि श्री उदाहरण देते हैं कि भगवान जिनेन्द्र देव के पद विहार में
उनके चरणों के नीचे सुरभित पद्म पृथ्वीकायिक नहीं होते
बल्कि सुगन्धी से भरे हुए वनस्पतिकायिक ही होते हैं
एकीभाव स्त्रोत में लिखा है - पादन्यासे अर्थात भगवान के चरण कमलों के कारण उनके नीचे जो पद्म होते हैं वे हेममय हो जाते हैं, सुरभि से भर जाते हैं
विद्वानों के तर्कों को ख़ारिज करते हुए मुनि श्री ने समझाया
कि महल बनाने के लिए वज्र जैसा कठोर होना पडेगा
परन्तु कठोर होते हुए भी उसमें वनस्पतिकायिक जीव जिन्दा रह सकते हैं
और अपनी-अपनी आयु को पूरी करके निकल भी सकते हैं
दूसरा तर्क है कि वनस्पतिकायिक जीवों की अगर अधिकतम आयु दस हजार वर्ष होती है तो ये अनादि रचनाएँ कैसे संभव हैं?
मुनि श्री बताते हैं कि इसमें भी कोई बाधा नहीं है क्योंकि जीव की आयु पूर्ण होने पर वह निकल जाता है
और दूसरा जीव वहाँ आ सकता है
वनस्पति नष्ट हो जाये ऐसा कोई नियम नहीं है
वह ज्यों का त्यों बना रह सकता है
इसके विपरीत मनुष्य का शरीर आयु पूरी होने पर नष्ट हो जाता है
पृथ्वीकायिकों के साथ भी ऐसा नहीं होता
चिन्तन का स्पष्टीकरण करते हुए मुनिश्री कहते हैं कि यह चिन्तन है और गलत भी हो सकता है
क्योंकि सर्वज्ञ देव की बातों के विषय में निर्णय करना कठिन है
मुनि श्री कहते हैं कि जब आचार्य विद्यानन्दी महाराज श्लोकवार्तिक में ‘पुष्करं जल कमलं’ लिखते हैं
तो जल का कमल तो जल कमल जैसा ही होना चाहिए
कमल वनस्पतिकायिक खिलेंगे तो ही सुगन्धी देंगे
पृथ्वीकायिक कमल को plastic जैसे होंगे
अतः हमें विचारना चाहिए कि पुष्कर क्या वास्तव में पृथ्वीकायिक हैं?